सरकार नए वित्त वर्ष में जल का अधिकार ( राइट टू वाटर) लागू करेगी। शहरों और गांवों में नए ट्यूबवेल और हैंडपंप का खनन नहीं हो सकेगा। पूर्व से मौजूद ऐसे स्रोतों की जियो टैगिंग की जाएगी, ताकि पानी की बचत को अमल में लाया जा सके। इसकी निगरानी के लिए नियामक आयोग बनेगा। ये सभी विभागों के बीच समन्वय करेगा। इस कानून का ड्राफ्ट नए बजट सत्र में पेश होगा। इसके पूर्व फरवरी में मिंटो हॉल में एक मंथन कार्यक्रम जल विशेषज्ञों के साथ होगा।
प्रस्तावित कानून को लेकर मंत्रालय में लगातार हरेक पहलू पर चिंतन चल रहा है। इस काम में पीएचई के अलावा ग्रामीण विकास विभाग, नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग, जल संसाधन, लोक निर्माण विभाग, वन, आवास एवं पर्यावरण विभाग आदि की बैठकों का सिलसिला जारी है। यह बैठकें प्रस्तावित राइट टू वाटर कानून के विभिन्न पहलुओं को लेकर चल रही हैं। इसमें इन विभागों की जवाबदेही तय होगी।
क्या होगा : वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं...
- बगैर अनुमति खनन तो जुर्माना भी : जल अधिकार कानून अमल में आने पर शहरी और ग्रामीण इलाकों में नए ट्यूबवेल और हैंडपंप खनन की परमिशन नहीं मिलेगी, लेकिन यह प्रावधान उन स्थानों पर लागू होगा, जहां पूर्व से भूमिगत जल स्रोतों या नल जल योजना को अमल में लाया जा रहा है। लेकिन इस मामले में पेंच सिंचाई एवं उद्यानिकी को लेकर उलझा हुआ है। यही वजह है कि अभी जुर्माने की राशि औैर सजा की अवधि तय होना बाकी है। इस संबंध में मंत्रालय स्तर पर मंथन चल रहा है।
- भूमिगत स्रोतों में पुनर्भरण करना होगा : भूमिगत स्रोतों से पानी लेने पर पुनर्भरण की जवाबदारी अब ट्यूबवेल उपयोगकर्ता को लेनी होगी। इसके लिए उसे आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल को अमल में लाना होगा।
- पानी खर्च और बचत का डाटा सेंटर बनेगा : राइट टू वाटर के तहत अब सभी जिलों में पानी खर्च और बचत का डाटा सेंटर बनेगा। पानी बचत से आशय है कि बरसात का कितना पानी वैज्ञानिक तरीके से वापस धरती में पहुंचाया। राइट टू वाटर की खातिर हरेक जल स्त्रोत को जियो टैग किया जाएगा। यह काम फिलहाल जल संसाधन विभाग की बोधि परियोजना को सौंपा जाना प्रस्तावित है।
- स्टेट लेवल इंस्टीट्यूट बनेगा : मंत्रालय सूत्रों की मानें तो राइट टू वाटर की खातिर एक राज्य स्तरीय इंस्टीट्यूट बनेगा। इसमें पानी पर शोध, गुणवत्ता परीक्षण, बचत, पुनर्भरण आदि को लेकर काम होगा। यह काम शहरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों से मिले फीडबैक के आधार पर होगा। इंस्टीट्यूट के आकार लेने के पूर्व वॉल्मी को यह जवाबदारी सौंपी जानी प्रस्तावित है।
- शहरी क्षेत्र को 90 लीटर पानी देने की गारंटी : जल अधिकार में शामिल होगा कि शहरी क्षेत्र के प्रत्येक नागरिक को उसकी न्यूनतम मांग के लिए 90 लीटर पानी मिल सके। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति 55 लीटर पानी देना तय किया गया है।
- जैविक खेती का प्रचार, कम पानी की फसलों पर रहेगा जोर : जल अधिकार के तहत गांवों में जैविक खेती का प्रचार किया जाएगा। केमिकल खेती से बचने की सलाह दी जाएगी। साथ ही कम पानी की फसलें लेने के बारे में कृषकों को जागरूक किया जाएगा।
- माइनिंग पर होगा कंट्रोल : प्रस्तावित कानून में ये भी प्रावधान किया जा रहा है कि विभिन्न तरह के खनिजों की खुदाई का परमिशन गठित होने वाले नियामक आयोग की एनओसी के बाद दी जाए। यह प्रस्ताव कई स्थानों पर विभिन्न रूप में हो रहे खनन पर नियंत्रण और पानी बचाओ के तहत हैं।
राइट टू वाटर की कुछ खास बातें...
- हरेक शहर और गांव में पानी का बजट बनेगा।
- बंद जल स्रोतों को पुर्नजीवित किया जाएगा।
- ट्यूबवेल को रीचार्ज करना होगा।
- उद्योगों को वेस्ट वाटर को रिसाइकिल करना पड़ेगा।
- पानी बचाने मक्का, कोदो-कुटकी जैसी फसलों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
- आंगनबाड़ियों में मक्का-कोदो-कुटकी का इस्तेमाल पोषण आहार के रूप में होगा।
- दूषित पानी को नदी, तालाब, डैम, पोखर, बंड और अन्य स्रोतों में जाने से रोकना।
- सिंचाई के लिए कृषकों को आधुनिक तरीके से खेती के लिए प्रोत्साहित करना।
- शहरों और गांवों में पानी जागरुकता के लिए जल मित्र सेना (स्वंयसेवी कार्यकर्ता) बनेगी।